Friday 17 October 2014

दीपावली की रात पूजन के समय ये शुभ काम भूले नहीं

दीपावली की रात पूजन के समय ये 5 शुभ काम भूलना नहीं चाहिए

किसी भी देवी-देवता की प्रसन्नता पाने के लिए पूजन सबसे श्रेष्ठ उपाय है। 23 अक्टूबर को दीपावली है और इस दिन लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजन किया जाएगा। पूजन के समय कई छोटी-छोटी, लेकिन महत्वपूर्ण परंपराओं का पालन किया जाता है, जैसे तिलक लगाना, हाथों पर लाल धागा बांधना, कर्पूर से आरती करना आदि। यहां जानिए ऐसी ही पांच महत्वपूर्ण परंपराओं के वैज्ञानिक कारण और धार्मिक पक्ष...

पूजन के समय जरूरी है कलाई पर धागा बांधना

पूजन कर्म के समय हमारी कलाई पर लाल धागा बांधा जाता है। इसे रक्षासूत्र, कलेवा या मौली कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह धागा बांधने के बाद पूजन कर्म पूर्ण होते हैं। इस मान्यता का सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक पक्ष भी है।

प्रत्येक पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन में पूजा करवाने वाले ब्राह्मण हमारी कलाई पर मौली (एक धार्मिक धागा) बांधते हैं। इस संबंध में शास्त्रों का मत है कि मौली बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु महेश और तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है।

ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु की कृपा से बल मिलता है और शिवजी की कृपा से बुराइयों का अंत होता है। इसी प्रकार लक्ष्मी कृपा से धन, दुर्गा से शक्ति एवं सरस्वती की कृपा से बुद्धि प्राप्त होती है।

विज्ञान की दृष्टि से मौली बांधने से उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है। जब यह धागा बांधा जाता है तो इससे कलाई पर हल्का सा दबाव बनता है। इस दबाव से त्रिदोष- वात, पित्त तथा कफ को नियंत्रित होता है। रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा तब से चली रही है, जब दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था।

जानिए

- तिलक क्यों लगाते हैं
- आरती के समय कर्पूर क्यों जलाते हैं
- बैठने के लिए कुश का आसन श्रेष्ठ क्यों है
- दीपावली पर लक्ष्मी के साथ श्रीगणेश की पूजा क्यों की जाती है

तिलक लगाना

किसी भी पूजन में तिलक धारण करना महत्वपूर्ण परंपरा है। शास्त्रों के अनुसार हमें सूने माथे के साथ भगवान के सामने नहीं जाना चाहिए, क्योंकि यह शुभ नहीं माना जाता। सूने माथे को शुभ बनाने के लिए पूजन के समय तिलक लगाया जाता है। तिलक माथे पर या दोनों भौहों के बीच लगाया जाता है। तिलक कुमकुम या चंदन जैसी पवित्र चीजों से लगाया जाता है।

इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि तिलक लगाने से दिमाग शांत रहता है और मस्तिष्क को शीतलता मिलती है। जब दिमाग शांत रहता है तो हम पूजन कर्म पूरी भक्ति और एकाग्रता से कर पाते हैं। इसीलिए पूजन के प्रारंभ में ही तिलक लगाया जाता है। तिलक लगाने वाले स्थान पर आज्ञा चक्र होता है और इस चक्र को संतुलित रखने के लिए भी तिलक लगाना महत्वपूर्ण है। इससे बुद्धि का विकास होता है और थकावट दूर होती है।



आरती के समय कर्पूर क्यों जलाते हैं

देवी-देवताओं के पूजन में किए जाने वाले सभी कर्मों का संबंध धर्म के साथ ही हमारे स्वास्थ्य से भी है। पूजन में आरती करना महत्वपूर्ण कर्म है और आरती में कर्पूर भी अनिवार्य रूप से जलाया जाता है। कर्पूर जलाने की परंपरा के पीछे भी कई कारण मौजूद हैं। कर्पूर तीव्र उड़नशील वानस्पतिक द्रव्य है। यह सफेद रंग का होता है। इसमें तीखी गंध होती है।

कर्पूर जलाने की परंपरा प्राचीन समय से चली रही है। शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं के समक्ष कर्पूर जलाने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जिस घर में नियमित रूप से कर्पूर जलाया जाता है, वहां पितृदोष या किसी भी प्रकार के ग्रह दोषों का असर नहीं होता है। कर्पूर जलाने से वातावरण पवित्र और सुगंधित होता है। ऐसे वातावरण से भगवान अति प्रसन्न होते हैं। कर्पूर के प्रभाव से घर का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है, इसकी महक से हमारे विचारों में भी सकारात्मकता आती है।

कर्पूर जलाने का वैज्ञानिक महत्व भी है। कर्पूर एक सुगंधित वस्तु है और इसे जलने पर कर्पूर की महक वातावरण में तेजी से फैल जाती है। इसकी महक से वातावरण में मौजूद कई सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं, जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। कर्पूर जलाने से वातावरण की शुद्ध हो जाता है।

यदि आप रात को सोने से पहले कर्पूर जलाकर सोएंगे तो इससे चमत्कारी रूप से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। ऐसा करने पर अनिद्रा की शिकायत दूर हो जाती है, बुरे सपने नहीं आते हैं।

धार्मिक कार्यों में कुश का उपयोग क्यों श्रेष्ठ है?

दीपावली की रात पूजन के समय ये 5 शुभ काम भूलना नहीं चाहिए

पूजन कर्म में बैठने के लिए विशेष प्रकार के आसन का उपयोग किया जाता है। यह कुश का बना होता है। कुश एक प्रकार की घास है। इस घास से बने आसन ही पूजन कर्म के लिए श्रेष्ठ बताए गए हैं। शास्त्रों के अनुसार कुश की घास से बने आसन पर बैठकर पूजन करने से श्रेष्ठ फलों की प्राप्ति होती है।

इस संबंध में वैज्ञानिक कारण यह है कि कुश ऊर्जा का कुचालक है यानी कुश ऊर्जा को एक ओर से दूसरी ओर प्रवाहित नहीं करता है। पूजन के समय लंबे समय तक बैठे रहने से हमारे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। यदि हम किसी और आसन पर बैठते हैं तो यह ऊर्जा धरती में उतर जाती है, जबकि कुश के आसन पर बैठकर पूजा करने से यह ऊर्जा हमारे शरीर में ही बनी रहती है। इस ऊर्जा के प्रभाव से शरीर को शक्ति प्राप्त होती है और चेहरे पर तेज बढ़ता है।

दीपावली पर लक्ष्मी के साथ ही गणेशजी की पूजा क्यों करनी चाहिए

दीपावली की रात पूजन के समय ये 5 शुभ काम भूलना नहीं चाहिए

दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व बताया गया है, लेकिन लक्ष्मी की पूजा के साथ ही श्रीगणेश की पूजा भी अनिवार्य रूप से करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश प्रथम पूज्य हैं और इनके पूजन के बिना किसी भी मांगलिक कार्य की पूर्णता संभव नहीं हैं। गणेशजी को शिवजी ने प्रथम पूज्य होने वरदान दिया था, इसी कारण इनकी पूजा महत्वपूर्ण हैं।

दीपावली पर लक्ष्मी को पूजने से तभी धन-धान्य की प्राप्ति हो सकती है, जब श्रीगणेश को भी पूजा जाए। श्रीगणेश के पूजन से हमें रिद्धि और सिद्धि की प्राप्ति होती है, साथ ही लक्ष्मी कृपा भी मिलती है। इसी वजह से सभी प्रकार के पूजन कर्म की शुरुआत श्रीगणेश की पूजा के साथ ही होती है।

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