
****कुरान और गैर मुस्लमान****
इस लेख को लिखने से मेरा किसी भी मजहब का विरोध करने का कोई उद्देश्य नही है। अपितु यह लेख इस्लाम के प्रचार के लिए है । कुरान मुसलमानों का मजहबी ग्रन्थ है.मुसलमानों के आलावा इसका ज्ञान गैर मुस्लिमों को भी होना आवश्यक है।
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मानव एकता और भाईचारे के विपरीत कुरान का मूलतत्व और लक्ष्य इस्लामी एकता व इस्लामी भाईचारा है. गैर मुसलमानों के साथ मित्रता रखना कुरान में मना है. कुरान मुसलमानों को हिन्दू
धर्म व बाकि के मतों के विरूद्ध शत्रुता रखने का निर्देश देती है । कुरान के अनुसार जब कभी जिहाद हो ,तब गैर मुस्लिमों को देखते ही मार डालना चाहिए। कुरान में मुसलमानों को केवल मुसलमानों से मित्रता करने का आदेश है।
सुरा ३ की आयत ११८ में लिखा है कि,
“अपने (मजहब) के लोगो के अतिरिक्त किन्ही भी लोगो से मित्रता मत करो।“
लगभग यही बात सुरा ३ कि आयत २७ में भी कही गई है, “इमां वाले मुसलमानों को छोड़कर किसी भी काफिर से मित्रता न करे। “
कुरान की लगभग १५० से भी अधिक आयतें मुसलमानों को गैर मुसलमानों के प्रति भड़काती है।
सन १९८४ में हिंदू महासभा के दो कार्यकर्ताओं ने कुरान की २४ आयातों का एक पत्रक छपवाया । उस पत्रक को छपवाने पर उनको गिरफ्तार कर लिया गया। परन्तु तुंरत ही कोर्ट ने उनको रिहा कर दिया।
कोर्ट ने फ़ैसला दिया,”कुरान मजीद का आदर करते हुए इन आयतों के सूक्ष्म अध्यन से पता चलता है की ये आयते मुसलमानों को गैर मुसलमानों के प्रति द्वेषभावना भड़काती है………….”
उन्ही आयतों में से कुछ आयतें निम्न है…………….
सुरा ९ आयत ५ में लिखा है,…….
”फ़िर जब पवित्र महीने बीत जायें तो मुशरिकों (मूर्ती पूजक) को जहाँ कहीं पाओ कत्ल करो और उन्हें पकड़ो।, वघेरो और हर घाट की जगह उनकी ताक में बैठो। यदि वे तोबा कर ले ,नमाज कायम करे,और जकात दे तो उनका रास्ता छोड़ दो। निसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है। “
इस आयत से साफ पता चलता है की अल्लाह और इश्वर एक नही हो सकते । अल्लाह सिर्फ़ मुसलमानों का है , गैर मुसलमानों का वह तभी हो सकता है जब की वे मुस्लमान बन जाए। अन्यथा वह सिर्फ़ मुसलमानों को गैर मुसलमानों को मार डालने का आदेश देता है।
सुरा ९ की आयत २३ में लिखा है कि,
“हे इमां वालो अपने पिता व भाइयों को अपना मित्र न बनाओ ,यदि वे इमां कि अपेक्षा कुफ्र को पसंद करें ,और तुमसे जो मित्रता का नाता जोडेगा तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे। “
इस आयत में नव प्रवेशी मुसलमानों को साफ आदेश है कि,जब कोई व्यक्ति मुस्लमान बने तो वह अपने माता , पिता, भाई सभी से सम्बन्ध समाप्त कर ले।
यही कारण है कि जो एक बार मुस्लमान बन जाता है, तब वह अपने परिवार के साथ साथ राष्ट्र से भी कट जाता है।
सुरा ४ की आयत ५६ तो मानवता की क्रूरतम मिशाल पेश करती है ………..
”जिन लोगो ने हमारी आयतों से इंकार किया उन्हें हम अग्नि में झोंक देगे। जब उनकी खाले पक जाएँगी ,तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसा-स्वादन कर लें। निसंदेह अल्लाह ने प्रभुत्वशाली तत्व दर्शाया है।”
सुरा ३२ की आयत २२ में लिखा है
“और उनसे बढकर जालिम कोन होगा जिसे उसके रब की आयतों के द्वारा चेताया जाए और फ़िर भी वह उनसे मुँह फेर ले।निश्चय ही ऐसे अपराधियों से हमे बदला लेना है। “
सुरा ९ ,आयत १२३ में लिखा है की,
” हे इमां वालों ,उन काफिरों से लड़ो जो तुम्हारे आस पास है,और चाहिए कि वो तुममे शक्ति पायें।”
सुरा २ कि आयत १९३ …………
”उनके विरूद्ध जब तक लड़ते रहो, जब तक मूर्ती पूजा समाप्त न हो जाए और अल्लाह का मजहब(इस्लाम) सब पर हावी न हो जाए. “
सूरा २६ आयत ९४ ……………….
”तो वे गुमराह (बुत व बुतपरस्त) औन्धे मुँह दोजख (नरक) की आग में डाल दिए जायंगे.”
सूरा ९ , आयत २८ …………………..
”हे इमां वालों (मुसलमानों) मुशरिक (मूर्ती पूजक) नापाक है। “ गैर मुसलमानों को समाप्त करने के बाद उनकी संपत्ति ,उनकी औरतों ,उनके बच्चों का क्या किया जाए ? उसके बारे में कुरान ,मुसलमानों को उसे अल्लाह का उपहार समझ कर उसका भोग करना चाहिए।
सूरा ४८ , आयत २० में कहा गया है ,…..
”यह लूट अल्लाह ने दी है। “
सूरा ८, आयत ६९………..
”उन अच्छी चीजो का जिन्हें तुमने युद्ध करके प्राप्त किया है,पूरा भोग करो। “
सूरा १४ ,आयत १३ …………
”हम मूर्ती पूजकों को नष्ट कर देंगे और तुम्हे उनके मकानों और जमीनों पर रहने देंगे।”
मुसलमानों के लिए गैर मुस्लिमो के मकान व संपत्ति ही हलाल नही है, अपितु उनकी स्त्रिओंका भोग करने की भी पूरी इजाजत दी गई है।
सूरा ४ ,आयत २४…………..
”विवाहित औरतों के साथ विवाह हराम है , परन्तु युद्ध में माले-गनीमत के रूप में प्राप्त की गई औरतें तो तुम्हारी गुलाम है ,उनके साथ विवाह करना जायज है। “
अल्बुखारी की हदीस जिल्द ४ सफा ८८ में मोहम्मद ने स्वं कहा है,
“मेरा गुजर लूट पर होता है । “
अल्बुखारी की हदीस जिल्द १ सफा १९९ में मोहम्मद कहता है ,.
”लूट मेरे लिए हलाल कर दी गई है ,मुझसे पहले पेगम्बरों के लिए यह हलाल नही थी। “
इस्लाम
का सबसे महत्वपूर्ण मिशन पूरे विश्व को दारुल इस्लाम बनाना है।
कुरान, हदीस, हिदाया, सीरतुन्नबी इस्लाम के बुनयादी ग्रन्थ है.इन सभी ग्रंथों में मुसलमानों को दूसरे मत वालो के साथ क्रूरतम बर्ताव करकेउनके सामने सिर्फ़ इस्लाम स्वीकार करना अथवा म्रत्यु दो ही विचार रखने होते है।
इस्लाम में लूट प्रसाद के रूप में वितरण की जाती है।
अगर दुनिया में शांति चाहते हो तो इस पुस्तक पर पूर्ण प्रतिबन्ध होना चाहिए वरना विश्व को बहुत नर संहार का सामान करना पड़ सकता है.
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